About Puja
सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः" अर्थात् अनन्त परब्रह्म नारायण का स्वरूप सत्य है, हम सभी उनकी शरण ग्रहण करते हैं। सत्, चित्त् एवं आनन्द स्वरूप, परात्पर ब्रह्म ही संसार में सत्यनारायण नाम से अभिव्यक्त (प्रकाशित) हो रहे हैं। परमात्मा का मूल स्वरूप सत्य है और सत्य ही नारायण हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- "धर्मसंस्थापनार्थाय" धर्म वही है जो सत्य में प्रतिष्ठित है और उसी सत्य युक्त धर्म की रक्षा एवं स्थापना के निमित्त सत्य की महिमा को प्रकाशित करने के लिए भगवान् सत्यनारायण स्वरूप में अवतार ग्रहण करते हैं।
हमारी सनातन परम्परा में सभी माङ्गलिक कार्यों के प्रारम्भ में गणेश पूजा तथा कार्य की सम्पन्नता में भगवान् सत्यनारायण की कथा श्रवण करने की विशेष परम्परा है। कथा के माध्यम से भगवान् के दिव्य स्वरूप का श्रवण तथा श्रद्धाभाव के द्वारा सत्यनारायण की उपासना होती है।
सत्यव्रती भगवान् वासुदेव का नाम, स्वरूप, लीला एवं धाम सभी सत्य हैं, इन्हीं सत्य-स्वरूप नारायण की कथा जगत् में प्रचारित एवं प्रसारित हुई। यह कथा समाज में अत्यन्त लोकप्रिय तथा प्रचलित है। समस्त शारीरिक और मानसिक विकारों की शुद्धि, सौहार्द-भाव, पवित्रता-पावनता आदि भगवान् सत्यनारायण की उपासना से ही प्राप्त होता है। अभिमान शून्य होकर साधना करने वाला साधक अपने इष्ट परमात्मा की कृपा प्राप्त करता है, इसीलिए सत्यप्रतिज्ञ होकर भगवद्गुण, लीला, कथा आदि का श्रवण कर शास्त्रानुकूल मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन यापन करना चाहिए।
"सत्यमेव जयति नानृतम्" अर्थात् सत्य की सदा विजय होती है, असत्य की नहीं । यह सिद्धान्त ही सत्यनारायण व्रत कथा का सार तत्व है। 'स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड में सत्यनारायण व्रत कथा प्राप्त होता है, इस कथा का दो विषय मुख्य हैं- प्रमाद (आलस) के कारण पूर्व में किये गये सत्यसङ्कल्प का विस्मरण तथा भगवत् प्रसाद का अपमान । ब्राह्मण, पत्नी, पुत्री एवं दामाद आदि को सत्य की अवहेलना करने तथा स्वकर्तव्य को समय सीमा के अन्तर्गत् पूर्ण न करने के कारण अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।
सम्पूर्ण कथा का सार यही है कि अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण एवं लकड़ी विक्रेता के द्वारा, सत्य का अनुशरण करने से ईश्वर की प्राप्ति हुई तथा असत्य का आचरण करने से साधुवणिक् तथा उसके परिवार की अत्यन्त दुर्गति हुई। इन कथाओं से हमें यह प्रेरणा मिलती है की सत्यमार्ग का दृढतापूर्वक पालन हमें करना चाहिए। मनुष्य जब सत्य का पालन या अनुसरण करता है तो सर्वदा उसे कल्याण की प्राप्ति होती है।
इस कथा का श्रवण करने से कुछ शङ्काएँ भी उत्पन्न होती हैं, जिज्ञासु जिज्ञासा करते हैं कि साधुवणिक्, शतानन्द, उल्लकामुख, काष्ठविक्रेता, तुङ्गध्वज आदि के द्वारा किस कथा का श्रवण किया गया था ?
कथा के माध्यम से भगवान् सत्यनारायण का पूजन, सत्यव्रत का पालन एवं भगवत्-लीला का श्रवण करना ही मूल उद्देश्य है। सत्यनारायण व्रत एवं पूजन के साथ ही भगवान् की दिव्य लीलाओं का श्रवण, स्मरण, कीर्तन, करने की भी महत्ता है।
अनन्त अखिलब्रह्माण्ड नायक आदि पुरुष परमपिता परमात्मा ही सत्य हैं और एक मात्र वही ध्यान एवं उपासना के योग्य हैं, नवधा भक्ति के द्वारा साधक परमात्मा की अनुभूति होती है।
कथा प्रारम्भ से पूर्व सभी देवताओं का आवाहन, स्थापन एवं पूजन किया जाता है, कथा के अनन्तर होम आदि करना चाहिए। प्रत्येक पूर्णिमा अथवा किसी भी मांगलिक अवसर पर इस कथा के श्रवण का विधान है।
Process
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा-सङ्कल्प
- गणेश गौरी पूजन
- कलश स्थापन वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका,नवग्रह पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता,
- पञ्चलोकपाल, दस दिक्पाल, वास्तुदेवता पूजन एवं स्मरण
- शालग्राम शिलापूजन या लड्डू गोपाल पूजन
- सरस्वती एवं ब्राह्मण पूजन
- अथ श्रीसत्यनारायण व्रत कथा प्रारम्भ प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ एवं पञ्चम अध्याय
- हवन प्रकरण
- सङ्कल्प
- पंचभूसंस्कार, अग्निध्यान पूजन
- हवन विधि (आधार आहुति,आज्य आहुति)
- द्रव्यत्याग (वराहुति) नवग्रहहोम, प्रधान होम
- अग्नि का उत्तरपूजन, स्विष्टकृत हवन
- भूरादि नव आहुतियाँ, अग्निप्रदक्षिणा, त्र्यायुष्करण, संस्रवप्राशन और दक्षिणादान
- उत्तर पूजन,आरती, पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा, क्षमाप्रार्थना
- आवाहित देवों का विसर्जन
- रक्षाबन्धन, तिलककरण, आशीर्वाद, चरणामृत ग्रहण
- तुलसीग्रहण, प्रसादग्रहण
Benefits
- आध्यात्मिक शान्ति :- सत्यनारायण पूजा से मानसिक शान्ति और वैचारिक शुद्धता होती है।
- सुख-समृद्धि की प्राप्ति :- इस कथा के द्वारा घर में सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- नैतिक बल और साहस :- इस पूजा से उपासक में सकारात्मकता का संचार एवं नकारात्मकता का शमन होता है।
- शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार : - शारीरिक स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है।
- विपत्ति से मुक्ति :- यह पूजा व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की विपत्तियों एवं कष्टों से मुक्ति प्रदान कर आत्मबल को मजबूत करती है।
- धन-धान्य की प्राप्ति :- जो उपासक श्रद्धापूर्ण भाव से युक्त होकर सत्यनारायण व्रत कथा का श्रवण करते हैं उन्हें सत्यपालन की प्रेरणा के साथ धन-धान्य की भी प्राप्ति होती है ।
- मनोरथ सिद्धि :- शुद्धभाव से की गयी भगवान् सत्यनारायण की उपासना साधक के सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करती है ।
- पापों से मुक्ति :- जो साधक इस सत्यनारायण व्रत का आचारण एवं पालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।
- भगवद्-कृपा प्राप्ति :- यथा- परम तेजस्वी विद्वान् शतानन्द नामक ब्राह्मण द्वितीय जन्म में सुदामा ब्राह्मण के रूप में हुए जो कृष्ण के सखा बने तथा कृष्ण कृपा प्राप्त की ।
इस प्रकार भगवान् सत्यनारायण व्रत कथा के विभिन्न दृष्ट और अदृष्ट लाभ वर्तमान समाज में भी दृष्टिगोचर होते हैं।
Puja Samagri
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत,
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सर्वोषधि
- पीला कपड़ा सूती
- गोघृत
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- कुशा
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 05
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 1 kg
- पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- तुलसी पत्र -7
- पानी वाला नारियल
- पंजीरी, केला, पंचामृत
- पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन