About Puja
शंख चक्रधारी भगवान् श्रीकृष्ण ने द्वापरयुग के अंतिम चरण में अर्जुन को माध्यम बनाकर जो अमृतमय उपदेश समस्त संसार को दिया उसे हम “श्रीमद्भागवद्गीता” के नाम से जानते हैं। यह परमपवित्र अमृत उपदेश महाभारत के भीष्मपर्व से उद्धृत है जिसमें कुल 18 अध्यायों हैं और उन अठारह (18) अध्यायों में कुल 700 श्लोक हैं। ये श्लोक मनुष्य को धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और योग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं ।
गीता,गौ और गायत्री का हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों एवं पुराणों में विशद विवेचन है। सद्चिद् आनन्दस्वरुप भगवान् श्री कृष्ण की यह परमपवित्र वाणी (उपदेश) मनुष्य का कल्याण करने वाली है । जिस प्रकार गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उपदेश दिया (कर्मयोग, भक्ति, ज्ञानयोग, और ध्यानयोग) उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन के प्रत्येक पहलु पर शास्त्र का वचन स्मृत करना चाहिए । यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रासंगिक है।
“श्रीमद्भागवद्गीता” का पाठ करने से व्यक्ति के आंतरिक आत्मविश्वास में वृद्धि होती है साथ ही शांति और शारीरिक-मानसिक शक्ति का संचार होता है। गीता के श्लोकों का जप करने से व्यक्ति का मन शांत होता है और वह अपने जीवन में अधिक उद्देश्यपूर्ण और सकारात्मक रूप से कार्य करता है।
Process
श्रीमद्भगवद्गीता पाठ में प्रयोग होने वाली विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा सङ्कल्प
- गणेश - गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- प्रधान देवता पूजन
- श्रीमद्भगवद्गीता सस्वर पाठ
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, भोग, विसर्जन आदि
Benefits
- आध्यात्मिक शांति :-
भागवत गीता का पाठ मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करता है। यह व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। - कर्म का सही मार्गदर्शन :-
गीता के श्लोक हमें सही कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह शास्त्र जीवन में सफलता के लिए कर्मों के महत्व को समझाता है और जीवन में सही दिशा में कदम बढ़ाने की प्रेरणा देता है। - निराशा से मुक्ति :-
गीता के श्लोक हमें निराशा से उबारते हैं और जीवन की कठिनाइयों को समझने और उनसे निपटने की ताकत प्रदान करते हैं। - धार्मिक और मानसिक सशक्तिकरण :-
गीता का पाठ व्यक्ति को न केवल मानसिक रूप से सशक्त करता है, अपितु यह उसे अपनी धार्मिक स्थिति को मजबूत करने में भी सहायता करता है। - व्यक्तिगत और सामाजिक समृद्धि :-
गीता के उपदेशों का पालन करने से न केवल व्यक्तिगत जीवन में समृद्धि आती है, बल्कि यह व्यक्ति के सामाजिक जीवन में भी सुधार लाता है।
Puja Samagri
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस,
- दोना , पञ्चमेवा
- गरी गोला
- चावल(छोटा वाला),
- सप्तमृत्तिका
- सर्वोषधि
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र:-
- काला तिल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- कुशा
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 1 kg
- पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- पानी वाला नारियल