About Puja
भूमिपूजा एक प्राचीन हिंदू परंपरा है, जिसका उद्देश्य निर्माण स्थल की शुद्धि करने से है। जब हम भूमि पर किसी प्रकार का कोई निर्माण कार्य करते हैं तब निर्माण से पूर्व भूमि की शुद्धि के निमित्त भूमि पूजा का विधान शास्त्रों में प्राप्त होता है। नूतन घर, धर्मशाला, गोशाला, दुकान (प्रतिष्ठान), कारखाना, अस्पताल या अन्य कोई भी स्थान जहाँ नवनिर्माण करना हो, उस भूमि का विधिपूर्व संसोधन एवं पूजन करने की प्राचीन परम्परा है।
अथर्ववेद में भगवती पृथ्वी की प्रार्थना की गयी है –“माताभूमि: पुत्रो अहं पृथिव्याः” अर्थात् भूमि हमारी माता है एवं हम भूमि के पुत्र हैं इस द्रष्टि से भी मनुष्य को भगवती भूमि की अर्चना करनी चाहिए। भूमि पूजन के निमित्त योग्य ब्राह्मण के माध्यम से शुभ तिथि एवं माह सुनिश्चित कर पूजा संपन्न करनी चाहिए। भूमि पूजन के समय अपने कुलदेवता, क्षेत्रपाल, वास्तुदेव, दश दिक्पाल इत्यादि का भी विधिवत् पूजन करना चाहिए ।
विशेष :- जहाँ भूमि पूजन करना ही वहां गौवास आवश्यक बतलाया गया है यदि यह व्यवस्था उपलब्ध न हो तो गाय के गोबर से वहां भूमि का लेपन करना चाहिए ।
- शिला पूजन एवं गृह निर्माण के किये यदि सूर्य मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर और कुंभ इन राशियों पर हो तो वह मुहूर्त उत्तम मुहूर्त माना जाता है।
- शिला पूजन एवं नींव स्थापन के लिए वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष और फाल्गुन मास शुभ मास के रूप में स्वीकार किये गए हैं, इसके साथ ही नक्षत्र, तिथि,वार तथा राहुकाल पर भी विचार अवश्य करना चाहिए।
Process
भूमिपूजन\शिला स्थापन में प्रयोग होने वाली विधि-
- आग्येन दिशा में गर्त निर्माण
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा- सङ्कल्प
- गणेश गौरी पूजन
- कलशस्थापन एवं वरुणादिदेवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्य मन्त्र पाठ
- साङ्कल्पिक नान्दीमुख श्राद्ध
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता, पञ्चलोकपाल, दशदिक्पाल, वास्तु पूजन
- रक्षाविधान,प्रधान देवता पूजन
- पञ्चगव्यनिर्माण
- पञ्चशिलास्थापन, वास्तुदेव ध्यान, अष्टनागों का आवाहन
- धर्म रूप वृष का आवाहन
- शिलाओं का प्रक्षालन, सप्तमृत्तिका स्नान, पूजन विधि
- गर्त भूमिलेपन, पञ्चशिला एवं पंच कुम्भस्थापन
- कूर्मपूजन, अनन्तपूजन, भूमिपूजन, भूदेवी को अर्घ्यदान
- भूदेवी को बलि प्रदान
- गर्त में तेल और सरसो का विकिरण
- शिला एवं कलश स्थापन, दिक्पाल पूजा बलि, विश्वकर्मा पूजन
- वास्तोषपति पूजन एंव और यथा शक्ति जप, आरती
- प्रसाद वितरण
Benefits
भूमि पूजा के कई लाभ होते हैं, जो न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी हमें लाभ पहुँचाते हैं। कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: भूमि पूजा से घर और आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो कार्य के सफल होने में मदद करता है।
- वास्तु दोष का निवारण: यह पूजा वास्तु दोष को दूर करती है और घर में समृद्धि और सुख लाती है।
- दुर्भाग्य और विघ्न का नाश : भूमि पूजा से घर में आने वाली सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों और विघ्नों का नाश होता है।
- स्वास्थ्य और सुख-शांति :- यह पूजा घर के सभी सदस्य के स्वास्थ्य और सुख-शांति को सुनिश्चित करती है।
- धन और संपत्ति की वृद्धि :- भूमि पूजा के माध्यम से देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में धन और संपत्ति के प्रवाह में वृद्धि होती है।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी , हल्दी, अबीर ,गुलाल, अभ्रक ,गङ्गाजल, गुलाबजल ,इत्र, शहद ,धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई ,यज्ञोपवीत, पीला सरसों ,देशी घी, कपूर ,माचिस, जौ ,दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा , सफेद चन्दन, लाल चन्दन ,अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला ,चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती,काला तिल, चावल, कमलगट्टा,हवन सामग्री, घी,गुग्गुल, गुड़ (बूरा या शक्कर), पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद , हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच , नवग्रह समिधा, हवन समिधा , घृत पात्र, कुश, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध - 100ML, दही - 50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार ), दूर्वादल (घास ) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg, पुष्पमाला -5( विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव – 2, थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि , बैठने हेतु दरी,चादर,आसन , गोदुग्ध,गोदधि ।