About Puja

शब्दार्थ ही शब्द के भाव को द्योतित अथवा प्रकाशित कर रहा है। कनक = स्वर्ण अर्थात् षडैश्वर्य की धारा प्रवाहित हो जिस स्तोत्र के द्वारा उस स्तवन को  कनकधारा की संज्ञा दी गई है। परमपूज्य आद्यगुरु भगवान् शङ्कराचार्य जी  जब वटुक थे, तब उनके जीवन में एक घटना घटित हुई। एक बार भगवान् शङ्कराचार्य भिक्षा के लिए एक सद्गृहस्थ के यहां गए। द्वार से आवाज लगाई "भिक्षां देहि" उस घर में एक अत्यन्त जरा जीर्ण युक्त वृद्धा रहती थी, लेकिन जब वृद्धा ने सुना कोई वटुक ब्रह्मचारी भिक्षा की याचना कर रहा है, तो विचार किया कि मेरा यहां भिक्षा देने के लिए तो कुछ नहीं है, शास्त्रवचन है "अतिथि देवो भव" तथा अतिथि जिस घर से विना कुछ प्राप्त किये चले जाते हैं, तो उस स्थान के लोगों को अपना दुर्भाग्य देकर तथा पुण्य लेकर  जाते हैं -

         अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात् प्रतिनिवर्तते।

         स दत्वा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।।

इस प्रकार विचार करते हुए उस वृद्धा माता ने देखा, एक सूखा आंवला पड़ा हुआ था, माता ने शुष्क आंवले को लेकर वटुक के कमण्डलु में दे दिया। भगवान् शङ्कराचार्य को समस्त परिस्थिति का ज्ञात हो गया और वहीं पर कनकधारा स्तोत्र की रचना तथा पाठ कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया  तथा उस वृद्धा माता के यहां स्वर्ण की वर्षा होने लगी। इस स्तोत्र पाठ से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं

Process

स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ

प्रतिज्ञा-सङ्कल्प

गणपति गौरी पूजन

कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन

पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक

षोडशमातृका पूजन

सप्तघृतमातृका पूजन

आयुष्यमन्त्रपाठ

सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)

नवग्रह मण्डल पूजन

अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन

पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 

रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन

पाठ विधान

विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास

ध्यानम्, स्तोत्र पाठ

पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका

आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन

घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम

भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति

संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान

प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 

पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन

Benefits

कनकधारा स्तोत्र पाठ करने या कराने वाले के यहां समस्त ऐश्वयों की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी अपने स्वामी भगवान् विष्णु के साथ, पाठफल से सानुकूल विराजमान रहती हैं।

धनदा माता लक्ष्मी, स्तोत्र पाठ से प्रसन्न होकर अपनी कृपा कटाक्ष से, भक्त को अक्षय धन की प्राप्ति कराती हैं।

भगवान् नारायण की परम प्रेयसी माता लक्ष्मी दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वर्षा करती हैं।

साधक भक्त कनकधारा के पाठ से माता लक्ष्मी के दया दृष्टि का पात्र बनकर समस्त मनोवांछित फलों की प्राप्ति करता है।

कनकधारा स्तोत्र पाठ, सम्पत्ति, ह्री, श्री, विद्या, वैभव साम्राज्य तथा सर्वविध सुख शान्ति की प्राप्ति कराती है।

स्तुति पाठ द्वारा वेदस्वरूपा मां श्री एवं लक्ष्मी सर्वप्रकार से भक्त का मङ्गल करती हैं तथा सौभाग्य की पेटिका प्रदान करती हैं।

Puja Samagri

हल्दी, अबीर 

गुलाल, अभ्रक 

गङ्गाजल, गुलाबजल 

इत्र, शहद 

धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 

यज्ञोपवीत, पीला सरसों 

देशी घी, कपूर 

माचिस, जौ 

दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 

सफेद चन्दन, लाल चन्दन 

अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 

चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 

सप्तमृत्तिका 

सप्तधान्य, सर्वोषधि 

पञ्चरत्न, मिश्री 

पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

काला तिल 

चावल 

कमलगट्टा,

हवन सामग्री, घी,गुग्गुल

गुड़ (बूरा या शक्कर)

बलिदान हेतु पापड़

काला उडद 

पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी

प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट

हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 

पिसा हुआ चन्दन 

नवग्रह समिधा

हवन समिधा 

घृत पात्र

haan is paath se sambhav hai

pratah kaal men yah poaath kiya ja sakta hai

About Puja

शब्दार्थ ही शब्द के भाव को द्योतित अथवा प्रकाशित कर रहा है। कनक = स्वर्ण अर्थात् षडैश्वर्य की धारा प्रवाहित हो जिस स्तोत्र के द्वारा उस स्तवन को  कनकधारा की संज्ञा दी गई है। परमपूज्य आद्यगुरु भगवान् शङ्कराचार्य जी  जब वटुक थे, तब उनके जीवन में एक घटना घटित हुई। एक बार भगवान् शङ्कराचार्य भिक्षा के लिए एक सद्गृहस्थ के यहां गए। द्वार से आवाज लगाई "भिक्षां देहि" उस घर में एक अत्यन्त जरा जीर्ण युक्त वृद्धा रहती थी, लेकिन जब वृद्धा ने सुना कोई वटुक ब्रह्मचारी भिक्षा की याचना कर रहा है, तो विचार किया कि मेरा यहां भिक्षा देने के लिए तो कुछ नहीं है, शास्त्रवचन है "अतिथि देवो भव" तथा अतिथि जिस घर से विना कुछ प्राप्त किये चले जाते हैं, तो उस स्थान के लोगों को अपना दुर्भाग्य देकर तथा पुण्य लेकर  जाते हैं -

         अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात् प्रतिनिवर्तते।

         स दत्वा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।।

इस प्रकार विचार करते हुए उस वृद्धा माता ने देखा, एक सूखा आंवला पड़ा हुआ था, माता ने शुष्क आंवले को लेकर वटुक के कमण्डलु में दे दिया। भगवान् शङ्कराचार्य को समस्त परिस्थिति का ज्ञात हो गया और वहीं पर कनकधारा स्तोत्र की रचना तथा पाठ कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया  तथा उस वृद्धा माता के यहां स्वर्ण की वर्षा होने लगी। इस स्तोत्र पाठ से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं

Process

स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ

प्रतिज्ञा-सङ्कल्प

गणपति गौरी पूजन

कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन

पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक

षोडशमातृका पूजन

सप्तघृतमातृका पूजन

आयुष्यमन्त्रपाठ

सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)

नवग्रह मण्डल पूजन

अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन

पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 

रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन

पाठ विधान

विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास

ध्यानम्, स्तोत्र पाठ

पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका

आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन

घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम

भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति

संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान

प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम 

पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन

Benefits

कनकधारा स्तोत्र पाठ करने या कराने वाले के यहां समस्त ऐश्वयों की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी अपने स्वामी भगवान् विष्णु के साथ, पाठफल से सानुकूल विराजमान रहती हैं।

धनदा माता लक्ष्मी, स्तोत्र पाठ से प्रसन्न होकर अपनी कृपा कटाक्ष से, भक्त को अक्षय धन की प्राप्ति कराती हैं।

भगवान् नारायण की परम प्रेयसी माता लक्ष्मी दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वर्षा करती हैं।

साधक भक्त कनकधारा के पाठ से माता लक्ष्मी के दया दृष्टि का पात्र बनकर समस्त मनोवांछित फलों की प्राप्ति करता है।

कनकधारा स्तोत्र पाठ, सम्पत्ति, ह्री, श्री, विद्या, वैभव साम्राज्य तथा सर्वविध सुख शान्ति की प्राप्ति कराती है।

स्तुति पाठ द्वारा वेदस्वरूपा मां श्री एवं लक्ष्मी सर्वप्रकार से भक्त का मङ्गल करती हैं तथा सौभाग्य की पेटिका प्रदान करती हैं।

Puja Samagri

हल्दी, अबीर 

गुलाल, अभ्रक 

गङ्गाजल, गुलाबजल 

इत्र, शहद 

धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 

यज्ञोपवीत, पीला सरसों 

देशी घी, कपूर 

माचिस, जौ 

दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 

सफेद चन्दन, लाल चन्दन 

अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 

चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 

सप्तमृत्तिका 

सप्तधान्य, सर्वोषधि 

पञ्चरत्न, मिश्री 

पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

काला तिल 

चावल 

कमलगट्टा,

हवन सामग्री, घी,गुग्गुल

गुड़ (बूरा या शक्कर)

बलिदान हेतु पापड़

काला उडद 

पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी

प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट

हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 

पिसा हुआ चन्दन 

नवग्रह समिधा

हवन समिधा 

घृत पात्र

haan is paath se sambhav hai

pratah kaal men yah poaath kiya ja sakta hai
कनकधारा

कनकधारा स्तोत्र

स्तोत्र पाठ | Duration : 4 Hrs 30 Min
Price : ₹ 2500 onwards
Price Range: 2500 to 6000

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