About Puja
गोदान का महत्व हमारे धार्मिक ग्रंथों में बड़े विस्तार से वर्णित है। विशेष रूप से, 'वेद', 'पुराण' और 'धर्मशास्त्र' में गोदान के महत्व को स्पष्ट रूप से बताया गया है। गोदान को 'मृत्युलोक' में सर्वोत्तम दान माना गया है, और यह व्यक्ति के लिए पुण्य की असीम प्राप्ति का मार्ग है। भगवान् श्री कृष्ण ने भी गोदान को अत्यधिक पुण्यकारी कार्य बताया है। गोदान के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपनी आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि उसका जीवन भी सुखमय और समृद्ध बनता है। यह कार्य विशेष रूप से तब प्रभावी होता है, जब उसे पूर्ण श्रद्धा और भावना के साथ सम्पादित किया जाता है। भारतीय संस्कृति में गोमाता का स्थान अत्यंत उत्कृष्ट है, हमारे सुसभ्य समाज में गाय मातृवत् पूजनीया है। इस पूज्य भाव का कारण गाय के अनन्त लाभप्रद गुण ही हैं, इसीलिए हमारे ऋषि महर्षियों का उद्घोष है कि- गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न लिङ्गं न च वयः अर्थात् किसी की भी पूजा को सम्पादित करने का एकमात्र कारण गुण ही होते हैं, गुणी व्यक्तियों की न आयु देखी जाती है और न लिङ्ग (चिन्ह) ही।
जिस प्रकार वैदिक साहित्य में पृथ्वी को माता कहा है, ठीक उसी प्रकार गाय को भी मातृपद पर प्रतिष्ठित किया गया है। गाय ही विश्व का एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसके देह से निःसृत (निकलने) होने वाला प्रत्येक विकार अत्यन्त उपादेय ही नहीं अपितु जीवनोपयोगी होने से बहुमूल्य भी है, जहाँ अन्य प्राणियों का मलमूत्र सर्वथा त्याज्य ही होता है। वहीं गाय का मूत्र एवं गोबर वातावरण को पवित्र करने वाला होता है। गोमय से लीपे गये गृह, प्राङ्गण आदि के सम्पर्क में आने वाले जीवन विरोधी क्षुद्र जीवाणु स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं। अनेक रोगों का उपशमन करने की क्षमता गोमूत्र में अन्तर्निहित होती है। उदर विकार, एवं नेत्र आदि में गोमूत्र अत्यन्त ही लाभप्रद है, इसीलिए हमारे ऋषि महषियों ने अपनी सूक्ष्मेक्षिका बुद्धि के द्वारा सघन विचारकर गाय को महनीय पद पर प्रतिष्ठित किया है।
भगवती श्रुति कहती है - "धेनुः सदनं रयीणाम्" एवं "गावो विश्वस्य मातरः" अर्थात् गाय धन का भण्डार है तथा गाय समग्र विश्व की माता है। इसी भाव का अनुसरण करते हुए वेदों में गाय को 'अघ्न्या ' अर्थात् अबध्य कहा गया है।
- कश्यप संहिता के अनुसार गोदुग्ध से अधिक आयु की वृद्धि करने वाला अन्य कोई आहार नही है जिससे आयु में वृद्धि हो ।
- अग्निपुराण में गो महिमा का वर्णन करते हुए लिखते हैं “गाव: पवित्रा: माङ्गल्या: गोषु लोका प्रतिष्ठिताः” अर्थात् गाय अत्यंत पवित्र एवं मङ्गल प्रदान करने वाली है तथा गायों में ही समस्त लोकों की प्रतिष्ठा है।
इस वचन के अनुसार सनातन संस्कृति एवं वैदिक वाङ्मय में गाय के शरीर में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है ऐसा वर्णित किया गया है।
- ब्रह्माण्ड पुराण में तो गोमाता को विष्णु स्वरुपा ही मान लिया गया है। गाय के समस्त अवयवों में भगवान् नारायण विराजमान होते हैं, जहाँ गाय को सर्वदेवमयी बताया गया वहीं वेद को सर्वगोमय कहकर संबोधित किया गया।
- स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान् विष्णु के साक्षात् शरीर से ही भगवती गौ की उत्पत्ति हुई है ऐसा कथन प्राप्त होता है।
- पद्मपुराण के अनुसार गाय का स्पर्श करने से समस्त पापों का नाश होता है।
- पद्मपुराण के अनुसार गाय और मनुष्य को परस्पर बन्धु कहा गया है अर्थात् गाय से रहित मनुष्य बन्धुशून्य ही होता है।
- महाभारत के अनुसार जो व्यक्ति गोमाता, अबला स्त्री, गुरु एवं ब्राह्मण की रक्षा के लिए अपना प्राण भी समर्पित करते हैं वे मनुष्य स्वर्ग के अधिकारी होते हैं।
गोदान करने के पुण्य प्रभाव से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है एवं सात पीढियों का उद्धार हो जाता है। पूज्यपाद स्वामी करपात्र जी महराज कहते हैं- बूढी, लंगड़ी, रोगिणी एवं दूध देने में असमर्थ चाहे किसी भी प्रकार की गौ हो उसको बेचना या उसकी उपेक्षा करना महापाप निकृष्ट पाप है। सर्वविध की गयी से सम्मान पूर्वक की गयी गौरक्षा, सेवा एवं पूजा परिवार और समाज का मङ्गल करने वाली होती है।
Process
गो एवं गोदान में प्रयोग होने वाली विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा सङ्कल्प
- गणेश -गौरी पूजन
- कलश स्थापन वरुणादि
- देवताओं का पूजन
- ब्राह्मण वरण सङ्कल्प
- गो प्रोक्षण
- गो सर्वाङ्ग में देवताओं का ध्यान एवं सर्वविध पूजन
- शृङ्गभूषार्थं स्वर्णशृङ्गम्
- चरणभूषणार्थं रजतखुर
- गलभूषार्थं घटा,
- दोहनार्थं कांस्य पात्रम्
- सर्वालङ्कारार्थं यथाशक्ति द्रव्यं
- गोपुच्छ तर्पण
- गोदान सङ्कल्प
- प्रतिष्ठा सङ्कल्प
- वत्स सहित गाय की चार प्रदक्षिणा
- गौ अभिवादन
- गाय के दक्षिण कान में मन्त्रपाठ
- गोपुच्छ के जल से अभिषेक
- रक्षासूत्र बन्धन
- तिलक करण परस्पर
- ब्राह्मणद्वारा आशीर्वाद
- विनियोग एवं अर्ध्य प्रदान सूर्यनारायण को
- आरती, प्रसाद ग्रहण
- क्षमा प्रार्थना
Benefits
- पुण्य प्राप्ति :- गोदान से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति के समस्त पापों का शमन करता है।
- समस्त मांगलिक कामनाओं की पूर्ति :- गोदान से भगवान् नारायण की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति की समस्त मांगलिक कामनाएं पूर्ण होती हैं।
- जीवन में समृद्धि :- गोदान से जीवन में धन-धान्य, सुख और शांति का वास होता है। यह व्यक्ति के लिए आशीर्वाद का स्रोत बनता है।
- संतान सुख की प्राप्ति :- जो लोग संतान सुख के लिए चिंतित रहते हैं, उन्हें गोदान अवश्य करना चाहिए। क्योंकि गौसेवा और दान करने से संतान की प्राप्ति होती है ।
- व्यावसायिक सफलता: गोदान से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, अपितु व्यापार और कार्यक्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है।
Puja Samagri
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता – 05
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 1 kg
- पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- पानी वाला नारियल,