About Puja
भारतीय संस्कृति में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि ये न केवल जीवन की आध्यात्मिक शुद्धता को बढ़ाते हैं, अपितु व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पहलू को शुद्ध और समृद्ध भी बनाते हैं। धर्मग्रंथों में संस्कारों का विशेष वर्णन हमें प्राप्त होता है उन्हीं संस्कारों में से एक संस्कार है जातकर्म संस्कार। यह संस्कार नवजात के जीवन का प्रथम संस्कार होता है । गर्भ में स्थित शिशु का पालन पोषण मातृरस से होता है इसलिए माता जिस प्रकार का आहार ग्रहण करती है उसी प्रकार के गुण, दोष शिशु में आते हैं उन दोषों के परिहार के निमित्त जातकर्म संस्कार किया जाता है । आहार सम्बन्धी जो भी दोष होते हैं उन दोषों का शमन इस संस्कार के माध्यम से किया जाता है । शास्त्रोक्त नियम यह है की नालछेदन से पूर्व ही जातकर्म संस्कार का सम्पादन करना चाहिए परन्तु वर्तमान काल में प्रसव सम्बन्धी सभी क्रियाएँ अधिकांश डॉक्टरों की देखरेख में ही की जाती हैं एवं प्रसव के पश्चात् ही नालछेदन कर दिया जाता है । शिशु नालछेदन के पश्चात् सूतक लग जाता है अतः जब सूतककाल की समाप्ति हो जाये , माता और नवजात शिशु मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हो जाएँ तभी जातकर्म संस्कार करना चाहिए । यह संस्कार शिशु की सुरक्षा, आशीर्वाद, और दीर्घायु के लिए किया जाता है।
जातकर्म संस्कार में करणीय कृत्य :-
- मेधाजन्न
- आयुष्यकरण
- बालक के जन्म की भूमि प्रार्थना
- बालक का अभिमर्शन
- माता के प्रति कल्याण कामना
- माता का दुग्धपान
- जलपूर्ण कुम्भ का स्थापन
- सूतिकागृह के द्वारा पर अग्नि स्थापन
- बालक की कुमार ग्रहों आदि बालग्रहों से रक्षा उपाय
- नालछेदन
Process
जातकर्म संस्कार में प्रयोग होने वाली विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन
- रक्षाविधान आदि
- मेधाजनन कर्म
- आयुष्करण कर्म
- आयुष्य मन्त्रों द्वारा अभिमर्षण
- अनुप्राणन
- जन्मभूमि अभियन्त्रण
- शिशुस्पर्शन
- मातृअभिमन्त्रण
- हृदयस्पर्शन
जातकर्म संस्कार नामकरण संस्कार के साथ भी किया जा सकता है।
Benefits
जातकर्म संस्कार पूजा के निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- शिशु के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए आशीर्वाद
- गृहस्थ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन
- परिवार के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- संतान के जीवन में शुभता और सफलता की प्राप्ति
- शिशु को जीवन के पहले संस्कार से जोड़ने का अवसर
- धार्मिक और आध्यात्मिक शांति का अनुभव
- शिशु को शुभ और पवित्र जीवन के मार्ग पर स्थापित करने का माध्यम
- परिवार में देवों का आशीर्वाद और सुख-शांति का अनुभव
Puja Samagri
- रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना छोटा, पञ्चमेवा, अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला, चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती, हवन सामग्री, कमल गट्टा -21, घी, गुड़(बूरा या शक्कर), पानपत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, हवन कुण्ड, नवग्रह समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध -100ML, दही -50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार (आवश्यकतानुसार), दूर्वादल (घास) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार -2 kg, पुष्पमाला -5(विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव –2, थाली -2 , कटोरी -5 ,लोटा -2 , चम्मच -2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा , धोती आदि, बैठने हेतु दरी, चादर, आसन ।