About Puja
अक्षरारंभ संस्कार पूजा को आमतौर पर बच्चे के चौथी या पांचवें वर्षगांठ के आसपास किया जाता है। इस पूजा में बच्चे को शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दिया जाता है और वह शिक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ता है। यह संस्कार जीवन में बच्चों के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। अक्षरारंभ संस्कार, शिक्षा की शुरुआत के साथ ही संस्कारों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह पूजा शिक्षा, ज्ञान और विद्या के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने का एक तरीका है। इस पूजा के माध्यम से बच्चों को विद्या के महत्व का आभास होता है और यह संस्कार उनके जीवन में श्रेष्ठता, समृद्धि और सफलता की राह को खोलता है। यह संस्कार जीव का परमात्मा से साक्षात्कार कराने वाला संस्कार है। इसलिए इस संस्कार की महिमा और भी विशिष्ट हो जाती है । अक्षरारम्भ संस्कार को “विद्यारम्भ एवं पाटीपूजन” संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। संस्कार के संपादन से पूर्व श्रीगणेश जी के द्वादश नामों का भी स्मरण करना चाहिए ।
Process
अक्षरारम्भ (अक्षरज्ञान) संस्कार प्रयोग विधि-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा- सङ्कल्प
- गणेश गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन
- रक्षाविधान
- विशेष देवों की स्थापना
- गणेश, सरस्वती, कुल देवता, गुरु तथा लक्ष्मीनारायण का आवाहन स्थापन एवं पूजन
- ज्ञानदाता विभिन्न आचार्यों यथा- पतञ्जलि, कपिल, कात्यायन, पारस्कर, यास्क, कपिंजल, गोभिल, जैमिनि, विश्वकर्मा, देवगुरु बृहस्पति तथा व्यास आदि आचार्यों का आवाहन एवं पूजन
- आर्ष ग्रन्थों की स्थापना एवं पूजन
- पंच भूसंस्कार, कुशकण्डिका
- हवन, आधार आहुति, आज्य आहुति
- आवाहित गणेश आदि देवताओं की आठआठआहुति
- ऋषियों तथा विद्याआचार्यों के नाम से आठ आठ आहुति
- भूरादि नव आहुति
- स्विष्कृत आहुति
- गुरु नमस्कार, सरस्वती प्रणाम
- गुरु द्वारा लेखन तथा वाचन
- बालक द्वारा लेखन तथा वाचन
- सुवासिनियों द्वारा कुमार की आरती
- भूयसी दक्षिणा सङ्कल्प
- विसर्जन
- भगवत्स्मरण
- निवेदन
Benefits
अक्षरारंभ संस्कार पूजा के निम्नलिखित लाभ होते हैं :-
- शिक्षा में सफलता :- इस पूजा से बच्चे को शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे उसकी शिक्षा में सफलता और समृद्धि आती है।
- मानसिक विकास :- इस पूजा के माध्यम से बच्चे का मानसिक विकास होता है और उसके मानसिक विकास में वृद्धि होती है।
- धार्मिक जागरूकता :- अक्षरारंभ संस्कार पूजा से बच्चे के अंदर धर्म, संस्कृति और भारतीय परंपराओं के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
- समाज में सम्मान :- इस संस्कार से बच्चे को समाज में एक आदर्श और सम्मानित नागरिक के रूप में विकसित किया जाता है।
- ज्ञान की देवी का आशीर्वाद :- सरस्वती माता की पूजा से बच्चे को विद्या और ज्ञान के क्षेत्र में आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उसका जीवन एक नई दिशा में प्रगति करता है।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना छोटा, पञ्चमेवा, अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला, चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री, पीला कपड़ा सूती, हवन सामग्री, कमल गट्टा -21, घी, गुड़(बूरा या शक्कर), पानपत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, हवन कुण्ड, नवग्रह समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध -100ML, दही -50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार (आवश्यकतानुसार), दूर्वादल (घास) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार -2 kg, पुष्पमाला-5 (विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव –2, थाली -2, कटोरी -5 ,लोटा -2 , चम्मच -2 आदि, अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित, पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा, धोती आदि, बैठने हेतु दरी, चादर, आसन।