About Puja
सोलह संस्कारों में कर्णवेध आठवाँ संस्कार है, जिसमें विधिपूर्वक बालक के दाहिने एवं बालिका के बाएं कर्ण (कान) का छेदन किया जाता है । जब कर्णछेदन की प्रक्रिया वैदिक मन्त्रों के साथ सम्पादित की जाती है तो, इसे हम कर्णवेध संस्कार के नाम से जानते हैं । यह संस्कार तीसरे अथवा पांचवें वर्ष में संपन्न किया जाता है । बालक एवं बालिका की दीर्घायु और लक्ष्मी की वृद्धि के लिए इस संस्कार का शास्त्रोक्त विधान है । ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों के संयम की दृष्टि से भी यह संस्कार अति महत्वपूर्ण है । कर्णवेध संस्कार अनिष्टग्रहों से भी रक्षा करता है, इसलिए इस संस्कार की विशेष महत्ता है ।
Process
कर्णवेध संस्कार की विधि -
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा-सङ्कल्प
- गणेश-गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- एकादश देवों का आवाहन एवं पूजन
- कुल देवता, वैद्य, ब्राह्मणों तथा कर्णच्छेदन कर्ता का अभिवादन
- बालक के दहिने कान अभिमन्त्रण
- बालक के बायें कान का अभिमन्त्रण
- कानों का वेधन
- कन्या के बायें कान का अभिमन्त्रण
- कन्या के दाहिने कान का अभिमन्त्रण
- कानों का छेदन
- कन्या का नासिकाच्छेदन
- दक्षिणा, ब्रह्मणभोजनसङ्कल्प
- विसर्जन
Benefits
कर्णवेध संस्कार पूजा के कई लाभ होते हैं, जो न केवल बच्चे के जीवन को प्रभावित करते हैं, बल्कि पूरे परिवार के लिए शुभ संकेत होते हैं:
- सुनने की क्षमता में वृद्धि :- इस पूजा के दौरान कानों में बाली पहनाने से बालक की श्रवण क्षमता में वृद्धि होती है।
- आध्यात्मिक शुद्धता :- यह पूजा बच्चे के जीवन में आध्यात्मिक शुद्धता का संचार करती है और उसे सकारात्मकता की ओर प्रेरित करती है।
- स्वास्थ्य में सुधार: हवन और मंत्रों का श्रवण, वाचन बच्चे के शरीर को शुद्ध करता है और उसके स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
- दीर्घायु और समृद्धि :- कर्णवेध संस्कार से बच्चे के जीवन में दीर्घायु और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- "रक्षाभूषणनिमित्तं बालस्य कर्णौ विध्येते" अर्थात् आचार्य सुश्रुत उल्लेख करते हैं की शिशु का कर्णच्छेदन करने के दो प्रमुख उद्देश्य है –
- सर्वतया बालक या बालिका की रक्षा करना ।
- कानों में छिद्र, आभूषण के लिए किये जाते हैं उन छिद्रों में आभूषण धारण करने से शिशु सुंदर लगता है।
- आचार्य चक्रपाणि ने कहा है-
- कर्णव्यधे कृते बालो न ग्रहैरभिभूयते।
भूष्यतेऽस्य मुखं तस्मात् कार्यस्तत् कर्णयोर्व्यध:।।
अर्थात् कर्णवेध संस्कार से शनि, राहु आदि अनिष्ट कारक ग्रहों का जीवन में दुष्प्रभाव नहीं होता।
बालक या बालिका की असाध्य रोगों से रक्षा तथा पेट सम्बन्धी रोगो का शमन (नाश) करता है।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना छोटा, पञ्चमेवा, अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला, चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती, हवन सामग्री, कमल गट्टा -21, घी, गुड़(बूरा या शक्कर), पानपत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, हवन कुण्ड, नवग्रह समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध -100ML, दही -50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार (आवश्यकतानुसार), दूर्वादल (घास) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार -2 kg, पुष्पमाला -5(विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव –2, थाली -2 , कटोरी -5 ,लोटा -2 , चम्मच -2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा , धोती आदि, बैठने हेतु दरी, चादर, आसन ।