About Puja
चूड़ाकरण संस्कार भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संस्कार विशेष रूप से लड़कों के लिए किया जाता है और यह बच्चे के जीवन में एक शुभ शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस संस्कार के द्वारा बच्चे का पहला बाल कटवाया जाता है और यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्धता और विकास को सुनिश्चित करता है। चुडा शब्द “सिखा” का पर्यावाची है। इस संस्कार के माध्यम से बालक के केशों का कर्तन कर शिखा अर्थात् छोटी धारण कराई जाति है। इस कारण इस संस्कार को “चूड़ाकरण संस्कार” कहा जाता है एवं आधुनिक भाषा में “मुण्डन संस्कार” के नाम से जाना जाता है । शिशु जब गर्भ से बहार आता है तो उस समय माता के गर्भ में आये हुए बाल अशुद्ध होते हैं, इन्हीं अशुद्ध बालों से निवृत्ति के लिए यह संस्कार विशेष वैदिक मंत्रो से किया जाता है । इस संस्कार के संपादन से शिशु के सर के रोमछिद्र उद्घटित हो जाते हैं तथा मलीनता दूर होती है जिससे नवीन तथा घने बाल आते हैं जिनसे मष्तिष्क की सुरक्षा भी होती है । आयु,बल एवं तेज की वृद्धि के लिए यह संस्कार आवश्यक है । महर्षि मनु अपने मनुस्मृति में लिखते हैं जन्म से पहले या तीसरे वर्ष में इस संस्कार को सम्पादित करना चाहिए । 'महर्षि आश्वलायन एवं बृहस्पति 'आदि के अनुसार 'तीसरे, पांचवे, सातवें, दशवें या ग्यारहवें' वर्ष में भी किया जा सकता है। 'महर्षि याज्ञवल्क्य' के अनुसार यह संस्कार कुल परम्परा के अनुसार भी किया जा सकता है। 'महर्षि कात्यायन' के अनुसार द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य) को यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए, साथ ही शिखा बन्धन भी करनी चाहिए। मुण्डन के पश्चात् शिखा धारण करने से तेज, बल एवं आयु में वृद्धि होती है। इस संस्कार से सद् बुद्धि , सद्प्रवृत्ति, सुपवित्रता एवं सद् विचारों में वृद्धि होती है। संस्कार की यह विधि शुभ और समृद्ध जीवन की ओर प्रेरित करती है, जिससे बच्चे को जीवनभर सुख-समृद्धि, दीर्घायु और सफलता प्राप्त होती है। यह संस्कार शास्त्रों के अनुसार किया जाता है, जिसमें पवित्र मंत्रों का उच्चारण, हवन, पूजा और विशेष आशीर्वाद दिया जाता है।
Process
चूड़ाकरण (मुण्डन) संस्कार में प्रयोग विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन
- रक्षाविधान आदि
- केशाधिवासन
- वेदीनिर्माण एवं पंचभूसंस्कार
- अग्निस्थापन (सभ्यनामकअग्नि)
- कुशकण्डिका
- पात्रासादन
- अधार-आज्यभाग संज्ञक हवन
- भूरादि नौ आहुती
- स्विष्टकृत आहुती
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पवित्रपतिपत्ति
- पूर्णपात्रदान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
(क) बालक या बालिका के दाहिने भाग का केश संस्कार :
केशों का उन्दन (भिगोना) कुशाबन्धन, उस्तराग्रहण, उस्तरे द्वारा केशस्पर्श ,जूटिका छेदन, केश स्थापन
(ख) बालक या बालिका का पिछले भाग का केश संस्कार पूर्ववत्
(ग) बालक या बालिका का बाये भाग का केश संस्कार - पूर्ववत्
छुरभ्रमण,केशस्थापन,भस्म धारण,गोदान,ब्राह्मण भोजन सङ्कल्प ,भगवत् स्मरण पूर्वक विसर्जन
Benefits
चूड़ाकरण संस्कार पूजा के कई लाभ हैं जो बच्चे के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाते हैं :-
- शारीरिक और मानसिक शुद्धता: यह संस्कार शिशु के शरीर और मन को शुद्ध करता है और उसे स्वास्थ्यवर्धक बनाता है।
- आध्यात्मिक सुरक्षा :- पूजा के माध्यम से बच्चे को आध्यात्मिक सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- दीर्घायु की प्राप्ति :- इस संस्कार के माध्यम से शिशु की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है।
- समृद्धि और सफलता :- यह संस्कार बच्चे के जीवन में समृद्धि, सफलता और सुख का मार्ग प्रशस्त करता है।
- शिशु का जब जन्म होता है तो उस समय शिशु के सर पर अशुद्ध बाल होते है जो तेज और वृद्धि को अवरुद्ध करते हैं अतः मुण्डन करने से शिशु के सर पर नए बाल आते हैं और वह पवित्र होता है।
- मुण्डन संस्कार करने से शिशु का तन (शरीर) पुष्ट होता है एवं शक्तियों का भी विकास होता है।
- यह संस्कार पूर्वजन्म में किये गए पापों का शमन( निवृत्ति ) भी करता है।
Puja Samagri
- रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना छोटा, पञ्चमेवा, अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला, चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती, हवन सामग्री, कमल गट्टा -21, घी, गुड़(बूरा या शक्कर), पानपत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, हवन कुण्ड, नवग्रह समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध -100ML, दही -50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार (आवश्यकतानुसार), दूर्वादल (घास) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार -2 kg, पुष्पमाला -5(विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव –2, थाली -2 , कटोरी -5 ,लोटा -2 , चम्मच -2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा , धोती आदि, बैठने हेतु दरी, चादर, आसन ।