About Puja
समावर्तन अर्थात् गुरुकुल से अपनी सम्पूर्ण शिक्षा पूर्ण कर घर लौटना । शिक्षा के पश्चात् दीक्षांत कार्यक्रम के स्वरुप में हम इसे जान सकते हैं । जातक जब गुरुकुलीय पद्धति से अपना अध्यन सम्पूर्ण कर लेता है उसके पश्चात् ही उसे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त होता है ।
समावर्तन संस्कार न केवल छात्र की विद्या प्राप्ति का उत्सव है, बल्कि यह उसके आचार्य के प्रति सम्मान और आभार का भी प्रतीक है। इस संस्कार को शास्त्रों के अनुसार पूरी विधि-विधान से संपन्न किया जाता है, और इसमें विशेष रूप से मंत्रोच्चारण, हवन, और आशीर्वाद की प्रक्रिया शामिल होती है। गुरुकुल से ज्ञान हो जाने के अनन्तर उस छात्र को स्नातक की संज्ञा से विभूषित किया जाता है । जिस छात्र ने गुरुकुल में वास करके ज्ञानगंगा या वेद्गंगा में स्नान किया हो उसे स्नातक की संज्ञा दी जाती है । वेदों में ऋषियों के वचन हैं “'आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः'अर्थात् शिक्षा सम्पूर्ण होने के पश्चात् आचार्य को सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर सन्तान परम्परा की रक्षा के निमित्त स्नातक को गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना चाहिए । वेदारम्भ संस्कार के दो दिन बाद “समावर्तन संस्कार” करना चाहिए ।
वर्तमान समाज में यज्ञोपवीत, वेदारम्भ एवं समावर्तन संस्कार एक साथ किये जाते हैं जो अनुचित है इसलिए शास्त्रोक्त विधि के अनुसार तीन दिन में ही तीनों संस्कारों को संपादित करना चाहिए । यही विधि सबसे उत्तम विधि है ।
शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात् गुरुवचनों का भी पालन करना चाहिए । तैत्तरीय उपनिषद की शिक्षावल्ली के ११ वें अनुवाक में स्नातकों के लिए समावर्तन संस्कार के अनन्तर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने के बाद कैसे जीवन जीना है और किन उपदेशों का पालन करना चाहिए यह बतलाया गया है -
सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः । सत्यान्न प्रमदितव्यम् । धर्मान्न प्रमदितव्यम्। कुशलान्न प्रमदितव्यम्। भूत्यै न प्रमदितव्यम् । स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् । देवपितृकार्याभ्यां प्रमदितव्यम्। मातृदेवो भव । पितृदेवो भव आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव । यान्यनवद्यानि कर्माणि । तानि सेवितव्यानि । नो इतराणि । यान्यस्माकं सुचरितानि । तानि त्वयोपास्यानि । नो इतराणि । ये के चास्मच्छ्रेयां सो ब्राह्मणाः तेषां त्वयाऽऽसनेन प्रश्वसितव्यम् । श्रद्धया देयम्। अश्रद्धयादेयम् । श्रिया देयम्। ह्रिया देयम्। भिया देयम्। संविदा देयम्।
यही शास्त्र की आज्ञा है — शास्त्रों का सारांश है। यही गुरु एवं माता-पिता का अपने शिष्यों और संतानों के प्रति उपदेश है जिससे की वे इन उपदेशों का पालन करें । यही सम्पूर्ण वेदों का रहस्य एवं उपदेश है। ईश्वर की आज्ञा तथा परम्परागत उपदेश का नाम अनुशासन है। इसलिये तुमको इसी प्रकार के कर्तव्य एवं सत्आचार का पालन करना चाहिए। ऐसी गुरु परम्परा है ।
Process
समावर्तन संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान आदि
- गोदान सङ्कल्प
- अग्निस्थापन (वैश्वानर अग्नि)
- ब्रह्मावरण
- कुशकण्डिका
- अग्नि प्रतिष्ठा
- अग्निध्यान
- हवनविधि
- त्र्यायुष्यकरण
- अग्नि और आचार्य का अभिवादन
- आशीर्वाद
- आठ कलशों के जल से अभिषेक विधि
- दण्ड और मृगचर्म का त्याग
- सूर्योपस्थान
- दन्तधावन नासिका आदि का स्पर्श
- पितरों के निमित्त जलाञ्जलि
- सविता देवता की प्रार्थना
- नूतन वस्त्र धारण यज्ञोपवीत धारण
- उत्तरीय वस्त्रधारण
- अलङ्कार आदिधारण
- पगड़ी धारण
- कर्णालंकार धारण
- अञ्जनधारण
- दर्पण में मुखावलोकन
- छत्र धारण
- उपानह धारण
- दण्डधारण
- आचार्य के लिए गोदान
- स्नातक के सामान्य नियम
- पूर्णाहुति
- दक्षिणा दान
- ब्राह्मण भोजन संकल्प
- भूयसी दक्षिणा सङ्कल्प
- विष्णु स्मरण
- महानीराजन और तिलक करण
Benefits
समावर्तन संस्कार पूजा के अनेक लाभ होते हैं जो जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
- विद्या और संस्कारों का संरक्षण :- इस संस्कार के माध्यम से छात्र को उसके आचार्य से विद्या की प्राप्ति के साथ-साथ जीवन के उचित संस्कार भी प्राप्त होते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति :- यह संस्कार व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है और जीवन के नए अध्याय में प्रवेश के लिए तैयार करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार :- हवन और मंत्रोच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- समाज में सम्मान :- इस संस्कार से व्यक्ति समाज में सम्मानित और प्रतिष्ठित बनता है, क्योंकि वह अपने गुरुओं से विद्या प्राप्त कर चुका होता है और जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए तैयार होता है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सशक्त होना :- समावर्तन संस्कार व्यक्ति को अपने जीवन की सही दिशा और उद्देश्य का अहसास कराता है, जिससे वह अधिक प्रबुद्ध और धर्मिक दृष्टिकोण से सशक्त होता है।
Puja Samagri
यज्ञोपवीत संस्कार की सामग्री से ही वेदाध्ययन संस्कार एवं समावर्तन संस्कार भी सम्पादित किया जा सकता है यदि सामग्री शेष हो तो । किसी सामग्री की आवश्यकता होने उस सामग्री की व्यवस्था की जा सकती है।