About Puja
संक्षिप्त परिचय :
नामकरण संस्कार, जैसा कि नाम से ही यह स्पष्ट है, एक शिशु को उसका नाम (पहचान ) देने के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान है। समाज में निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी, जीव, स्थान आदि की संज्ञा अर्थात् पहचान होती है परमात्मा के द्वारा संचालित यह समस्त सृष्टि संज्ञात्मक है । अर्थात् नाम के बिना किसी भी सामजिक प्राणी या वस्तु का व्यवहार नहीं हो सकता है । संसार में प्रत्येक वस्तु की जाति के अनुसार पहचान अर्थात् संज्ञा है । ज्योतिषशास्त्र के आधार पर नामकरण का वैज्ञानिक आधार भी है । प्राचीन भारतीय संस्कृति से आधुनिक काल पर्यंत नवजात शिशु का नामकरण नक्षत्रों के आधार पर किया जाता है । इसके आलावा माता –पिता भी स्वइच्छानुसार नाम की कल्पना कर लेते हैं । जब व्यक्ति को नाम लेकर पूरा जाता है या किसी कार्य को करने के लिए बोला जाता है तब वह अपने मनुष्य अपने नाम की संज्ञा सुन कार्य करने में प्रवृत्त हो जाता है ।
आचार्य बृहस्पति उल्लेख करते हैं -"नाम समस्त व्यवहार एवं मांगलिक कार्यों का कारण है" नाम से ही मनुष्य समाज में यश और कीर्ति प्राप्त करता है । यदि किसी नवजातक के नाम की संज्ञा किन्हीं भगवान् के नाम, स्वरूप ,गुण, लीला से युक्त हो तो उसकी महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। भारतीय वैदिक सनातन परम्परा में नामकरण संस्कार एक विशेष संस्कार है, जिसे सम्पूर्ण विधि, क्रिया एवं श्रद्धापूर्ण रूप से संपन्न करना चाहिए ऐसा शास्त्र का वचन है। व्यवहार की सिद्धि के लिए,आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए नामकरण संस्कार अवश्य शास्त्रोक्त परम्परा से करना चाहिए ऐसा “स्मृति संग्रह” नमक ग्रन्थ में वर्णित है ।
नामकरण संस्कार कब करना चाहिए ?
यद्यपि इस संस्कार को नवजातक के जन्म के पश्चात् ग्यारहवें दिन किया जाता है , परन्तु यदि शिशु और माता शरीर से पूर्ण स्वस्थ नहीं हों तो यह संस्कार अठारहवें ,उन्नीसवें , सौवें , या एक अयन के पश्चात् या अपने देश एवं कुल की परम्परा के अनुसार शुभ मुहूर्त में नामकरण संस्कार किया जा सकता है ।
नाम का स्वरूप कैसा हो ?
'पारस्कर गृह्यसूत्र' में उल्लेख है- कि बालक का नाम दो या चार अक्षरों से युक्त होना चाहिए। प्रथम अक्षर में घोषवर्ण (ग,घ,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म) नाम के मध्य में अन्तस्थ वर्ण (य,र,ल,व)और नाम के अन्तिम वर्ण दीर्घ होने चाहिए। एवं बालिका का नाम तीन या पांच अक्षरों वाला हो तथा अन्तिम वर्ण दीर्घ होना चाहिए । नाम भी दो प्रकार का होता है, जन्मराशि नाम और पुकार नाम। विवाह ,समस्त मांगलिक कार्य, यात्रा मुहूर्त आदि में जन्मराशि नाम का तथा व्यवहारिक कार्यों में नाम राशि की प्रधानता होती है।
Process
स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
प्रतिज्ञा सङ्कल्प
गणपति गौरी पूजन
कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारणअभिषेक
षोडशमातृका पूजन
सप्तघृतमातृका पूजन
आयुष्यमन्त्रपाठ
सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
नवग्रह मण्डल पूजन
अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
रक्षाविधान आदि
ब्राह्मणत्रय का भोजन सङ्कल्प
पंचगव्य हवन के लिए अग्नि (विधिनामक अग्नि) स्थापन एवं हवन
पंचभू संस्कार,अग्नि प्रतिष्ठा
प्रणीतापात्र स्थापन
पंचगव्य निर्माण
हवन
अनन्वारब्ध व्याहृतिहोम
पंचगव्य होम
प्रायश्चित्त होम (पंचवारुण होम)
स्विष्टकृत आहुती
संस्रवप्राशन
मर्जनविधि
पवित्रप्रतिपत्ति
पूर्णपात्रदान
प्रणीता विमोक
बर्हिहोम
पंचगव्यपान
नामकरण क्रिया
Benefits
- वैदिक विधि से नामकरण संस्कार द्वारा यश, कीर्ति का विस्तार तथा भाग्य का उदय होता है।
- नाम यदि भगवान के नाम से युक्त हो तो नाम के उच्चारण मात्र से ही भगवान नाम उच्चारण का फल प्राप्त हो जाता है।
- शिशु के लिए शुभ और समृद्ध जीवन की शुरुआत
- परिवार के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- शिशु के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए आशीर्वाद
- सभी रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद प्राप्त होता है
- शिशु का जीवन और भविष्य उज्जवल और सफल बनाने का अवसर
- घर में देवताओं का आशीर्वाद और शांति का संचार
- नए नाम से शिशु के जीवन में नवीनता और शुभता का आगमन
Puja Samagri
रोली, कलावा
सिन्दूर, लवङ्ग
इलाइची, सुपारी
हल्दी, अबीर
गुलाल, अभ्रक
गङ्गाजल, गुलाबजल
इत्र, शहद
धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
यज्ञोपवीत, पीला सरसों
देशी घी, कपूर
माचिस, जौ
दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
सफेद चन्दन, लाल चन्दन
अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
सप्तमृत्तिका
सप्तधान्य, सर्वोषधि
पञ्चरत्न, मिश्री
पीला कपड़ा सूती
पीपल का पत्ता 5
शङ्ख, कुशा
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
काला तिल
चावल
कमलगट्टा
हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
गुड़ (बूरा या शक्कर)
बलिदान हेतु पापड़
काला उडद
पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
पिसा हुआ चन्दन
नवग्रह समिधा
हवन समिधा
घृत पात्र
कुशा
पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
गाय का दूध - 100ML
दही - 50ML
मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
पान का पत्ता - 07
पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
आम का पल्लव - 2
विल्वपत्र - 21
तुलसी पत्र -7
शमी पत्र एवं पुष्प
पानी वाला नारियल
तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
अखण्ड दीपक -1
देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
गोदुग्ध,गोदधि