About Puja

निष्क्रमण अर्थात् शिशु को प्रथम बार घर से बहार ले जाना । पारस्करग्राह्यसूत्र में आचार्य पराशर उलेख करते हैं “चतुर्थे मासि निष्क्रमणिका।' 'सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति' अर्थात् यह संस्कार शिशु के जन्म के चतुर्थ मास में संपन्न करना चाहिए तथा सूर्य दर्शन भी कराना चहिये। निष्क्रमण के विषय में आचार्य बृहस्पति कहते हैं “अथ निष्क्रमणं नाम गृहात्प्रथम- निर्गमः” अर्थात् संस्कार के पश्चात् ही शिशु को घर से बहार ले जाने का विधान है। शास्त्रोक्त विधि के साथ ही शिशु का निष्क्रमण संस्कार करना चाहिए इससे बच्चे को सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होगी ही साथ ही शास्त्रअनुदेशन का पालन भी होगा ।

निष्क्रमण संस्कार में होने वाली विशेष विधि :-

  • भूमि उपवेशन ।
  • दोलारोहण ।
  • गोदुग्धपान  ।

पद्धति :- निष्क्रमण संस्कार पूजा की विधि काफी सरल और पवित्र होती है। यह पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है ताकि शिशु को शुभ आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इसकी पद्धति इस प्रकार है :-

  1. शुद्धिकरण प्रक्रिया :- पूजा शुरू होने से पहले घर और पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है। गंगाजल से पवित्रता का कार्य किया जाता है ताकि पूजा स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।
  2. मंत्रोच्चारण :- पंडितजी द्वारा विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इनमें भगवान विष्णु, शिव, और गणेश जी के मंत्रों का वाचन किया जाता है ताकि शिशु को सुरक्षा और आशीर्वाद मिल सके।
  3. हवन और यज्ञ :- हवन और यज्ञ के दौरान तिल, घी और कपूर का प्रयोग किया जाता है। इस दौरान दिए गए आहुति शिशु के जीवन में शुद्धता, लंबी उम्र और समृद्धि लाने का कार्य करती है।
  4. शिशु को बाहर ले जाना :- पूजा के पश्चात्, शिशु को पवित्र स्थान पर बाहर ले जाया जाता है और उसे आकाश, सूर्य और प्रकृति से जुड़ने का अनुभव कराया जाता है। इस दौरान शिशु को आशीर्वाद मिलता है और उसके जीवन की शुरुआत उज्जवल होती है
  5. प्रसाद वितरण :- पूजा के अंत में प्रसाद वितरित किया जाता है, जिससे सभी परिवार के सदस्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और शिशु के जीवन में शुभता का संचार होता है।
Process

स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ

प्रतिज्ञा सङ्कल्प

गणपति गौरी पूजन + सूर्य सूक्त का पाठ

कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन

पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक

षोडशमातृका पूजन

सप्तघृतमातृका पूजन

आयुष्यमन्त्रपाठ

सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)

नवग्रह मण्डल पूजन

अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन

पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 

रक्षाविधान आदि

दिशाओं तथा दिग्देवता आदि का स्थापन एवं पूजन

भगवान् सूर्य नारायण  का आवाहन एवं पूजन

सूर्याघ्य दान

प्रथम सूर्यनारायणदर्शन विधि

सूर्यनारायण प्रदक्षिणा विधि

सूर्यप्रणमाञ्जलि

भूम्युपवेशन

दोलारोहण(पर्यङ्कारोहण)

Benefits
  • शिशु की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु ।
  • शिशु को सकारात्मक और शुभ आशीर्वाद प्राप्ति के लिए  ।
  • शिशु की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है ।
  • घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ।
  • शिशु की जीवन यात्रा के पहले कदम को शुभ बनाना ।
  • परिवार में देवताओं के आशीर्वाद और खुशहाली  संचार के निमित्त ।
  • वैदिक विधि के माध्यम से संस्कारों को सम्पादित करने पर  शिशु  पुनः पुनः सुसंस्कृत होता है।
  • स्वास्थ्य रक्षणपूर्वक आयु की वृद्धि होती है।
Puja Samagri

रोली, कलावा    

सिन्दूर, लवङ्ग 

इलाइची, सुपारी 

हल्दी, अबीर 

गुलाल, अभ्रक 

गङ्गाजल, गुलाबजल 

इत्र, शहद 

धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 

यज्ञोपवीत, पीला सरसों 

देशी घी, कपूर 

माचिस, जौ 

दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 

सफेद चन्दन, लाल चन्दन 

अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 

चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 

सप्तमृत्तिका 

सप्तधान्य, सर्वोषधि 

पञ्चरत्न, मिश्री 

पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

काला तिल 

चावल 

कमलगट्टा

हवन सामग्री, घी,गुग्गुल

गुड़ (बूरा या शक्कर)

बलिदान हेतु पापड़

काला उडद 

पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी

प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट

हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 

पिसा हुआ चन्दन 

नवग्रह समिधा

हवन समिधा 

घृत पात्र

कुशा

पंच पात्र

• निष्क्रमण संस्कार पूजा शिशु के जन्म के बाद कुछ महीनों में की जाती है। इसका उद्देश्य शिशु को बाहरी वातावरण का अनुभव देना और उसे शुभ आशीर्वाद से विभूषित करना है।

• हां, आप सनातन के माध्यम से निष्क्रमण संस्कार पूजा को ऑनलाइन बुक कर सकते हैं। हम आपके लिए पंडितजी की व्यवस्था करते हैं।

• हां, पूजा को विशेष मुहूर्त पर किया जाता है। पंडित जी आपके लिए सही समय का निर्धारण करेंगे।

About Puja

निष्क्रमण अर्थात् शिशु को प्रथम बार घर से बहार ले जाना । पारस्करग्राह्यसूत्र में आचार्य पराशर उलेख करते हैं “चतुर्थे मासि निष्क्रमणिका।' 'सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति' अर्थात् यह संस्कार शिशु के जन्म के चतुर्थ मास में संपन्न करना चाहिए तथा सूर्य दर्शन भी कराना चहिये। निष्क्रमण के विषय में आचार्य बृहस्पति कहते हैं “अथ निष्क्रमणं नाम गृहात्प्रथम- निर्गमः” अर्थात् संस्कार के पश्चात् ही शिशु को घर से बहार ले जाने का विधान है। शास्त्रोक्त विधि के साथ ही शिशु का निष्क्रमण संस्कार करना चाहिए इससे बच्चे को सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होगी ही साथ ही शास्त्रअनुदेशन का पालन भी होगा ।

निष्क्रमण संस्कार में होने वाली विशेष विधि :-

  • भूमि उपवेशन ।
  • दोलारोहण ।
  • गोदुग्धपान  ।

पद्धति :- निष्क्रमण संस्कार पूजा की विधि काफी सरल और पवित्र होती है। यह पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है ताकि शिशु को शुभ आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इसकी पद्धति इस प्रकार है :-

  1. शुद्धिकरण प्रक्रिया :- पूजा शुरू होने से पहले घर और पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है। गंगाजल से पवित्रता का कार्य किया जाता है ताकि पूजा स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।
  2. मंत्रोच्चारण :- पंडितजी द्वारा विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इनमें भगवान विष्णु, शिव, और गणेश जी के मंत्रों का वाचन किया जाता है ताकि शिशु को सुरक्षा और आशीर्वाद मिल सके।
  3. हवन और यज्ञ :- हवन और यज्ञ के दौरान तिल, घी और कपूर का प्रयोग किया जाता है। इस दौरान दिए गए आहुति शिशु के जीवन में शुद्धता, लंबी उम्र और समृद्धि लाने का कार्य करती है।
  4. शिशु को बाहर ले जाना :- पूजा के पश्चात्, शिशु को पवित्र स्थान पर बाहर ले जाया जाता है और उसे आकाश, सूर्य और प्रकृति से जुड़ने का अनुभव कराया जाता है। इस दौरान शिशु को आशीर्वाद मिलता है और उसके जीवन की शुरुआत उज्जवल होती है
  5. प्रसाद वितरण :- पूजा के अंत में प्रसाद वितरित किया जाता है, जिससे सभी परिवार के सदस्य आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और शिशु के जीवन में शुभता का संचार होता है।
Process

स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ

प्रतिज्ञा सङ्कल्प

गणपति गौरी पूजन + सूर्य सूक्त का पाठ

कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन

पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक

षोडशमातृका पूजन

सप्तघृतमातृका पूजन

आयुष्यमन्त्रपाठ

सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)

नवग्रह मण्डल पूजन

अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन

पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल , वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 

रक्षाविधान आदि

दिशाओं तथा दिग्देवता आदि का स्थापन एवं पूजन

भगवान् सूर्य नारायण  का आवाहन एवं पूजन

सूर्याघ्य दान

प्रथम सूर्यनारायणदर्शन विधि

सूर्यनारायण प्रदक्षिणा विधि

सूर्यप्रणमाञ्जलि

भूम्युपवेशन

दोलारोहण(पर्यङ्कारोहण)

Benefits
  • शिशु की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु ।
  • शिशु को सकारात्मक और शुभ आशीर्वाद प्राप्ति के लिए  ।
  • शिशु की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है ।
  • घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ।
  • शिशु की जीवन यात्रा के पहले कदम को शुभ बनाना ।
  • परिवार में देवताओं के आशीर्वाद और खुशहाली  संचार के निमित्त ।
  • वैदिक विधि के माध्यम से संस्कारों को सम्पादित करने पर  शिशु  पुनः पुनः सुसंस्कृत होता है।
  • स्वास्थ्य रक्षणपूर्वक आयु की वृद्धि होती है।

Puja Samagri

रोली, कलावा    

सिन्दूर, लवङ्ग 

इलाइची, सुपारी 

हल्दी, अबीर 

गुलाल, अभ्रक 

गङ्गाजल, गुलाबजल 

इत्र, शहद 

धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 

यज्ञोपवीत, पीला सरसों 

देशी घी, कपूर 

माचिस, जौ 

दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 

सफेद चन्दन, लाल चन्दन 

अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 

चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 

सप्तमृत्तिका 

सप्तधान्य, सर्वोषधि 

पञ्चरत्न, मिश्री 

पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

काला तिल 

चावल 

कमलगट्टा

हवन सामग्री, घी,गुग्गुल

गुड़ (बूरा या शक्कर)

बलिदान हेतु पापड़

काला उडद 

पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी

प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट

हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 

पिसा हुआ चन्दन 

नवग्रह समिधा

हवन समिधा 

घृत पात्र

कुशा

पंच पात्र

• निष्क्रमण संस्कार पूजा शिशु के जन्म के बाद कुछ महीनों में की जाती है। इसका उद्देश्य शिशु को बाहरी वातावरण का अनुभव देना और उसे शुभ आशीर्वाद से विभूषित करना है।

• हां, आप सनातन के माध्यम से निष्क्रमण संस्कार पूजा को ऑनलाइन बुक कर सकते हैं। हम आपके लिए पंडितजी की व्यवस्था करते हैं।

• हां, पूजा को विशेष मुहूर्त पर किया जाता है। पंडित जी आपके लिए सही समय का निर्धारण करेंगे।
निष्क्रमण

निष्क्रमण संस्कार पूजा

संस्कार | Duration : 4 Hrs 30 Min
Price : ₹ 3100 onwards
Price Range: 3100 to 0

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