About Puja
वैदिक सनातन पद्धति में पितृ देवताओं का स्थान सर्वोपरि है, एतदर्थ पितरों की प्रसन्नता एवं मोक्ष हेतु ऋग्वेद के दशम् मण्डल में पितृसूक्त का वर्णन प्राप्त होता है। इस सूक्त के ऋषि शंख-यामायन, देवता पितर तथा छन्द त्रिष्टुप् एवं जगती है। पितृ सूक्त में 14 ऋचाएं (मन्त्र) हैं। पित्रीश्वरों की आत्मशांति तथा प्रसन्नता हेतु पितृसूक्त का पाठ किया जाता है। प्रायः समस्त मांगलिक कार्यों के संपादन से पूर्व “साङ्कल्पिक नान्दीश्राद्ध” के माध्यम से पितरों की अर्चना-पूजा की जाति है। महाभारत के अनुसार देवलोक के नीचे पितृलोक विद्यमान है, जहाँ पितृ देवता निवास करते हैं। पितरों की प्रसन्नता एवं मोक्ष के निमित्त पितृसूक्त के मन्त्रों का उच्चारण करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है, और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। यह पूजा पितृदोष, कुण्डली दोष, और अन्य पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति प्रदान करने में सहायक होती है। पितृसूक्त पूजा करने से, व्यक्ति को पितृऋण से मुक्ति एवं पितृदोष से शान्ति प्राप्त होती है।
Process
पितृ सूक्त पाठ प्रयोग होने वाली विधि :-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा सङ्कल्प
- गणेश गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, भोग, विसर्जन आदि
Benefits
- पितृदोष से मुक्ति :- यह पूजा पितृ दोष को दूर करने में अत्यंत प्रभावी होती है। पितृ दोष से उत्पन्न समस्याएँ जैसे मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह, और विभिन्न विघ्नों को दूर करता है।
- आत्मिक शांति और संतुलन: पितृसूक्त पूजा व्यक्ति के भीतर मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन स्थापित करती है, जिससे व्यक्ति का मन स्थिर रहता है, और जीवन में सुख-शांति का अनुभव होता है।
- पारिवारिक संबंधों में सुधार: पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सामंजस्य और एकता बढ़ती है, जिससे पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।
- धन, सुख और समृद्धि: पितृ सूक्त पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। पितरों के आशीर्वाद से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
- मुक्ति और मोक्ष: पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिससे उनके जीवन के पापों का नाश होता है और वे शांति पाते हैं।
- वैदिक वाङ्मय में पित्रीश्वरों को उत्तमपथ प्रदर्शक के स्वरुप में बतलाया गया है।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा, गरी गोला, चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री, पीला कपड़ा सूती, काला तिल, चावल, कमलगट्टा, हवन सामग्री, घी, गुग्गुल, गुड़ (बूरा या शक्कर), बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी, हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच, नवग्रह समिधा, हवन समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध - 100ML, दही - 50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार ), दूर्वादल (घास ) - 1मुठ, पान का पत्ता – 07, पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg, पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव – 2, तुलसी पत्र -7, पानी वाला नारियल, बिल्वपत्र, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा, धोती आदि, बैठने हेतु दरी,चादर,आसन, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित ।