About Puja
श्री शिवमहिम्न स्तोत्र मैं चन्द्रमौलीश्वर भूतभावन भूतेश भगवान् रुद्र के महिमा का वर्णन है। इस स्तोत्र के लेखक पुष्पदन्ताचार्य गन्धर्वों के राजा थे। वे परम शिव भक्त होने से प्रतिदिन शिवाराधन करते थे। दैवी शक्तिसम्पन्नता के कारण अदृश्य होने में सक्षम थे। वे छिपकर प्रमोद राजा के उद्यान से पूजा के लिए नित्य पुष्प ले जाया करते थे। वाटिका रक्षक समझ नहीं पाते थे। अचानक एक दिन राजा प्रमोद ने वाटिका में पहुँचकर मालियों से फूल की कमी का कारण पूछा। रक्षकों ने कहा- राजन! हमलोग रखवाली करते हैं, फिर भी पुष्प गायब हो जाते है। राजा ने विचार किया कि इसमें कोई देव्याशक्ति काम कर रही है, जब उसे निबद्ध किया जायेगा तब चोरी बन्द होगी। ऐसा विचार कर मार्ग पर बिल्वपत्र पुष्प जलादि शिव निर्माल्य छोड़वा दिया। दूसरे दिन गन्धर्वराज भूल से शिव निर्माल्य का उल्लंघन कर पुष्पचयन तो किया पर अपराध वश देव्याशक्ति क्षीण हो जाने के कारण उड़ न सके, तथा विचार करने लगे कि शिवाराधन में कहीं त्रुटि तो नहीं हुई। इसी विचार विमर्श में जब दृष्टि नीचे गयी तो उन्होंने पैरों के नीचे भूमि पर शिव-निर्माल्य पड़ा देखा और समझ गये कि इसी के उल्लंघन से मेरी दिव्यशक्तियों का ह्रास हुआ है। जिसके कारण मैं अदृश्य होकर उड़ने में असमर्थ हो रहा हूं। पुन: देव्याशक्ति प्राप्ति के लिए गन्धर्वराज ने भगवान् शिव की स्तुति की। वही स्तुति शिवमहिम्न स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिए यह स्तोत्र बडा ही उपयोगी है। खोयी हुई शक्ति को प्राप्त कराने वाला यह स्तोत्र है।
Process
स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
गणपति गौरी पूजन
कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
षोडशमातृका पूजन
सप्तघृतमातृका पूजन
आयुष्यमन्त्रपाठ
नवग्रह मण्डल पूजन अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
पाठ विधान
विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
श्रद्धा एवं भक्तिभाव से शिवमहिम्न का पाठ तथा शिवार्चन सर्वविध फलीभूत होता है।
इस स्तवन पाठ से भक्त की सर्वविध उन्नति होती है।
सांसारिक समस्त भयों से मुक्ति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति पवित्र अन्तःकरण से भक्ति पूर्वक भगवान् शिव के इस स्तोत्र का पाठ करता है या वैदिक ब्राह्मणों से विधिवत् कराता है, वह इस लोक में पर्याप्त धन और आयु को प्राप्त करता है।
दीक्षा, दान, तप, तीर्थाटन, ज्ञान तथा यज्ञादि-ये सब शिवमहिम्न स्तोत्र की सोलहवीं कला को भी नही प्राप्त कर सकते।
देवाधिदेव महादेव का पुष्पदन्त नामक एक दास; जो सभी गंधर्वो का राजा था, शिव जी के कोप से अपने ऐश्वर्य से च्युत हो गया था। उन्होंने इस परम दिव्य शिवमहिम्न की रचना कर; भगवान् शिव की कृपा से पुनः समस्त ऐश्वर्या को प्राप्त कर लिया।
Puja Samagri
रोली, कलावा
सिन्दूर, लवङ्ग
इलाइची, सुपारी
हल्दी, अबीर
गुलाल, अभ्रक
गङ्गाजल, गुलाबजल
इत्र, शहद
धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
यज्ञोपवीत, पीला सरसों
देशी घी, कपूर
माचिस, जौ
दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
सफेद चन्दन, लाल चन्दन
अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
सप्तमृत्तिका
सप्तधान्य, सर्वोषधि
पञ्चरत्न, मिश्री
पीला कपड़ा सूती