About Puja
वेद भगवान् के नि:श्वास है। वेदों के अंतर्गत् विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के निमित्त विभिन्न सूक्तों एवं मन्त्रों का वर्णन हैं, उन्हीं में से एक है श्रीसूक्त। श्री (लक्ष्मी) प्राप्ति की कामना से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति तथा व्यवसाय में वृद्धि के निमित्त “श्रीसूक्त” के वैदिक मन्त्रों का पाठ एवं होम (हवन) करने का विधान शास्त्रोल्लिखित है। माता लक्ष्मी का यह होम लक्ष्मी उपासकों की आर्थिक समस्याओं तथा दुःखों को समाप्त करने वाला है। “श्रीसूक्त” होम के प्रभाव से मनुष्य को निरोगता, व्यापार में उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, धन वृद्धि होती है तथा घर में सुख- शांति व्याप्त रहती है। इस श्रीसूक्त पाठ एवं होम के प्रभाव से समस्त क्लेशों तथा बाधाओं की निवृत्ति होती है। श्रीसूक्त का वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है। माता लक्ष्मी की प्राप्ति के दृष्टि से यह सूक्त अत्यंत महत्वपूर्ण है। दारिद्रय, दुःख, कष्ट एवं ऋण आदि की निवृत्ति के लिए श्रीसूक्त के पाठ एवं होम विधान किया जाता है।
भगवती लक्ष्मी की उपासना की दृष्टि से किया जाने वाला यह श्रीसूक्त होम धन सम्बन्धी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है तथा समृद्धि प्राप्ति के निमित्त प्रमुख वैदिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रिया है। श्रीसूक्तहोम, सर्वदा मन्त्रों के उच्चारण के साथ ही सम्पादित करना चाहिये तथा आहुति के निमित्त पवित्र अग्नि में कमलगट्टा समर्पित करना चाहिए। यह उत्तम होम लक्ष्मी उपासकों को उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्रदान करता है एवं परिवार में सुख, शान्ति और समृद्धि का वातावरण उपस्थित करता है। श्रीसूक्त पाठ के समय षोडश (16) मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो विशेष रूप से देवी लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों की महिमा का गुणगान करते हैं। इस होम में विभिन्न यज्ञ सामग्री, घी, तिल, कपूर और पंचमेवा आदि का समावेश होता है। श्रीसूक्त का उच्चारण और हवन दोनों ही आध्यात्मिक लाभों से परिपूर्ण होते हैं। यह न केवल भौतिक समृद्धि के लिए है, अपितु आध्यात्मिक उन्नति और शांति प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
Process
श्रीसूक्त पाठ प्रयोग विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा सङ्कल्प
- गणेश गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- प्रधान देवता पूजन
- पंचभूसंस्कार
- अग्नि स्थापन
- ब्रह्मा वरण
- कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति
- मूलमन्त्र आहुति
- चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति
- स्विष्टकृत आहुति
- पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन
- मार्जन
- पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक
- मार्जन
- बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, भोग, विसर्जन आदि
Benefits
श्रीसूक्त पाठ से होम (हवन) करने के कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ होते हैं। निम्नलिखित बिंदुओं में कुछ प्रमुख लाभ बताए गए हैं:
- धन-संपत्ति में वृद्धि :- लक्ष्मी माता की पूजा और आशीर्वाद से घर में धन और संपत्ति का वास होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति :- यह होम उपासक को आत्मिक शुद्धता प्रदान करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
- सुख-शांति की प्राप्ति :- हवन से मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।
- व्यावसायिक सफलता :- व्यापार और व्यवसाय में समृद्धि, विकास और सफलता की प्राप्ति होती है।
- समय की अनुकूलता :- यह हवन समय की अनुकूलता को बढ़ाता है और कठिन से कठिन परिस्थिति की निवृत्ति के निमित्त मदद करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश :- घर या कार्यस्थल में नकारात्मक ऊर्जा का नाश कर सकारात्मक वातावरण का निर्माण करता है।
- लक्ष्मी की कृपा :- इस हवन के माध्यम से लक्ष्मी माता की कृपा से जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा, गरी गोला, चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री, पीला कपड़ा सूती, काला तिल, चावल, कमलगट्टा, हवन सामग्री, घी, गुग्गुल, गुड़ (बूरा या शक्कर), बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी, हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच, नवग्रह समिधा, हवन समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध - 100ML, दही - 50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार ), दूर्वादल (घास ) - 1मुठ, पान का पत्ता – 07, पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg, पुष्पमाला - 5 ( विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव – 2, तुलसी पत्र -7, पानी वाला नारियल, बिल्वपत्र, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा, धोती आदि, बैठने हेतु दरी,चादर,आसन, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित।