About Puja
उपनयन संस्कार के अनन्तर ही जातक का वेदारम्भ संस्कार किया जाता है। जैसा की इस संस्कार के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है की आचार्य अपनी कुल परम्परा, वेदशाखा के अनुसार ब्रह्मचारी को मन्त्र प्रदान करते हैं। वेदारम्भ संस्कार के समय बच्चे को संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण कराया जाता है, और इसके साथ ही बटुक को वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों की प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। इस संस्कार से शिक्षा के प्रथम चरण की शुरुआत मानी जाती है। प्राचीन काल से यह संस्कार शिक्षा के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतीक रहा है, जिससे व्यक्ति को जीवन की सही दिशा मिलती है। वेदारम्भ संस्कार को पूर्णतः वैदिक विधि के अनुसार संपन्न किया जाता है। इस पूजा के समय पंडितजी बालक को वेदों की प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते हैं। यह संस्कार न केवल शारीरिक बल, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक बल को भी मजबूत करता है, जो जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होता है।
Process
- वेदारम्भ संस्कार में प्रयोग विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- पूजा-सङ्कल्प
- गणेश-गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल, दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन
- रक्षाविधान
- वेदी निर्माण
- पञ्चभूसंस्कार (परिसमूहन, उपलेपन, उल्लेखन, उद्धरण, अभ्युक्षण)
- अग्निस्थापन ( समुद्भव नामक)
- ब्रह्मावरण
- कुशकण्डिका
- अग्निप्रतिष्ठा
- हवन विधि :-
- यजुर्वेद के लिए आहुतियाँ
- ऋग्वेद के लिए आहुतियाँ
- सामवेद के लिए आहुतियाँ
- अथर्ववेद के लिए आहुतियाँ
- देवपूजन
- वेदारम्भ
- काशी प्रस्थान
- विद्यार्थी के नियम तथा अनुपालन
- त्र्यायुष्करण
- अग्निविसर्जन
- विष्णुस्मरण
Benefits
वेदारंभ संस्कार पूजा के अनेक लाभ होते हैं, जो जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं :-
- धार्मिक तथा भौतिक शिक्षा का प्रारम्भ :- इस संस्कार से धार्मिक तथा भौतिक शिक्षा का प्रारम्भ होता है, जो व्यक्ति को अपने धर्म और संस्कृति से जोड़ता है।
- सकारात्मक मानसिकता :- संस्कार के समय मंत्रों का उच्चारण और हवन व्यक्ति के मानसिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं और सकारात्मक विचारों को जन्म देते हैं।
- शारीरिक और मानसिक शक्ति :- यह संस्कार शारीरिक और मानसिक बल को मजबूत करता है, जो जीवन के विभिन्न चुनौतियों का सामना करने में सहायक होता है।
- धार्मिक आस्था का जागरण :- वेदारंभ संस्कार व्यक्ति को धार्मिक आस्थाओं से जोड़ता है, जिससे वह जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है।
- समाज में सम्मान :- इस संस्कार से व्यक्ति समाज में एक आदर्श और सम्मानित स्थान प्राप्त करता है, क्योंकि वह वेद एवं शास्त्रों का ज्ञाता और आस्थावान होता है।
- ओज, कान्ति की प्राप्ति :- ब्रह्मचारी का जब यज्ञोपवीत हो जाता है तो वह गायत्री मन्त्र जप का अधिकारी बन जाता है । गायत्री जप करने से ब्रह्मचारी को ओज तथा कान्ति की प्राप्ति होती है ।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी, हल्दी, अबीर, गुलाल, अभ्रक, गङ्गाजल, गुलाबजल, इत्र, शहद, धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई, यज्ञोपवीत, पीला सरसों, देशी घी, कपूर, माचिस, जौ, दोना छोटा, पञ्चमेवा, अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला, चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती, हवन सामग्री, कमल गट्टा -21, घी, गुड़(बूरा या शक्कर), पानपत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद, हवन कुण्ड, नवग्रह समिधा, घृत पात्र, कुशा, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध -100ML, दही -50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार (आवश्यकतानुसार), दूर्वादल (घास) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार -2 kg, पुष्पमाला -5(विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव –2, थाली -2 , कटोरी -5 ,लोटा -2 , चम्मच -2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र -गमछा , धोती आदि, बैठने हेतु दरी, चादर, आसन ।